पी कर दो घूँट देख ज़ाहिद
क्या तुझ से कहूँ शराब क्या है
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हम को दिखा दिखा के ग़ैरों के इत्र मलना
सच है इस एक पर्दे में छुपते हैं लाख ऐब
किसी को देख कर बे-ख़ुद दिल-ए-काम हो जाना
आशिक़ की बे-कसी का तो आलम न पूछिए
ज़ाहिद शराब-ए-नाब हो या बादा-ए-तुहूर
मुँह मिरा एक एक तकता था
करना जो मोहब्बत का इक़रार समझ लेना
अफ़्सुर्दगी-ए-दिल से ये रंग है सुख़न में
हाए अब कौन लगी दिल की बुझाने आए
पी हम ने बहुत शराब तौबा
ज़ाहिद को रट लगी है शराब-ए-तुहूर की
कभी मस्जिद में जो वाइज़ का बयाँ सुनता हूँ