परी थी कोई छलावा थी या जवानी थी
कहाँ ये हो गई चम्पत झलक दिखा के मुझे
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मिज़्गाँ हैं ग़ज़ब अबरू-ए-ख़म-दार के आगे
पी हम ने बहुत शराब तौबा
याद है पहले-पहल की वो मुलाक़ात की बात
कहा ये किस ने कि वादे का ए'तिबार न था
इसी ख़याल से तर्क उन की चाह कर न सके
अख़ीर वक़्त है किस मुँह से जाऊँ मस्जिद को
बताऊँ क्या किसी को मैं कि तुम क्या चीज़ हो क्या हो
सुन के मेरे इश्क़ की रूदाद को
क़सम निबाह की खाई थी उम्र भर के लिए
न आ जाए किसी पर दिल किसी का
ज़ाहिद शराब-ए-नाब हो या बादा-ए-तुहूर
अदा परियों की सूरत हूर की आँखें ग़ज़ालों की