पहुँचे उस को सलाम मेरा
भूले से न ले जो नाम मेरा
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मोहब्बत क्या बढ़ी है वहम बाहम बढ़ते जाते हैं
अजब ज़माने की गर्दिशें हैं ख़ुदा ही बस याद आ रहा है
जब न था ज़ब्त तो क्यूँ आए अयादत के लिए
आप ही से न जब रहा मतलब
मुँह मिरा एक एक तकता था
तमसील ओ इस्तिआरा ओ तश्बीह सब दुरुस्त
मिरे ऐबों की इस्लाहें हुआ कीं बहस-ए-दुश्मन से
क़सम निबाह की खाई थी उम्र भर के लिए
पी लो दो घूँट कि साक़ी की रहे बात 'हफ़ीज़'
जो काबे से निकले जगह दैर में की
कहा ये किस ने कि वादे का ए'तिबार न था