लुट गया वो तिरे कूचे में धरा जिस ने क़दम
इस तरह की भी कहीं राहज़नी होती है
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Jaun Eliya
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कभी मस्जिद में जो वाइज़ का बयाँ सुनता हूँ
शब-ए-विसाल ये कहते हैं वो सुना के मुझे
शब-ए-विसाल लगाया जो उन को सीने से
वो हम-कनार है जाम-ए-शराब हाथ में है
जुनूँ के जोश में फिरते हैं मारे मारे अब
इधर होते होते उधर होते होते
दिया जब जाम-ए-मय साक़ी ने भर के
उन की यकताई का दावा मिट गया
न आ जाए किसी पर दिल किसी का
इस को समझो न ख़त्त-ए-नफ़्स 'हफ़ीज़'
काफ़िर-ए-इश्क़ को क्या दैर-ओ-हरम से मतलब
तमसील ओ इस्तिआरा ओ तश्बीह सब दुरुस्त