जब न था ज़ब्त तो क्यूँ आए अयादत के लिए
तुम ने काहे को मिरा हाल-ए-परेशाँ देखा
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जब मिला कोई हसीं जान पर आफ़त आई
ख़ुद-ब-ख़ुद आँख बदल कर ये सवाल अच्छा है
हसीनों से फ़क़त साहिब-सलामत दूर की अच्छी
क़सम निबाह की खाई थी उम्र भर के लिए
सच है इस एक पर्दे में छुपते हैं लाख ऐब
मिरी शराब की तौबा पे जा न ऐ वाइज़
चाक-ए-दामाँ न रहा चाक-ए-गरेबाँ न रहा
नाज़नीं जिन के कुछ नियाज़ नहीं
यूँ तो हसीन अक्सर होते हैं शान वाले
उस को आज़ादी न मिलने का हमें मक़्दूर है
क़ासिद ख़िलाफ़-ए-ख़त कहीं तेरा बयाँ न हो
ओ आँख बदल के जाने वाले