गया जो हाथ से वो वक़्त फिर नहीं आता
कहाँ उमीद कि फिर दिन फिरें हमारे अब
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क़ासिद ख़िलाफ़-ए-ख़त कहीं तेरा बयाँ न हो
अफ़्सुर्दगी-ए-दिल से ये रंग है सुख़न में
जब तक कि तबीअ'त से तबीअत नहीं मिलती
दिल को इसी सबब से है इज़्तिराब शायद
कहीं मरने वाले कहा मानते हैं
कहा ये किस ने कि वादे का ए'तिबार न था
बताऊँ क्या किसी को मैं कि तुम क्या चीज़ हो क्या हो
जुनूँ के जोश में फिरते हैं मारे मारे अब
तमसील ओ इस्तिआरा ओ तश्बीह सब दुरुस्त
कोई जहाँ में न यारब हो मुब्तला-ए-फ़िराक़
हाए अब कौन लगी दिल की बुझाने आए
हो तर्क किसी से न मुलाक़ात किसी की