बैठ जाता हूँ जहाँ छाँव घनी होती है
हाए क्या चीज़ ग़रीब-उल-वतनी होती है
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इस को समझो न ख़त्त-ए-नफ़्स 'हफ़ीज़'
दिया जब जाम-ए-मय साक़ी ने भर के
उन को दिल दे के पशेमानी है
बोसा-ए-रुख़्सार पर तकरार रहने दीजिए
आदमी का आदमी हर हाल में हमदर्द हो
हो तर्क किसी से न मुलाक़ात किसी की
पी हम ने बहुत शराब तौबा
आशिक़ की बे-कसी का तो आलम न पूछिए
शब-ए-विसाल ये कहते हैं वो सुना के मुझे
परी थी कोई छलावा थी या जवानी थी
आप ही से न जब रहा मतलब