आप ही से न जब रहा मतलब
फिर रक़ीबों से मुझ को क्या मतलब
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ज़माने का भरोसा क्या अभी कुछ है अभी कुछ है
दिल इस लिए है दोस्त कि दिल में है जा-ए-दोस्त
बोसा-ए-रुख़्सार पर तकरार रहने दीजिए
हसीनों से फ़क़त साहिब-सलामत दूर की अच्छी
गया जो हाथ से वो वक़्त फिर नहीं आता
शब-ए-वस्ल है बहस हुज्जत अबस
दिल में हैं वस्ल के अरमान बहुत
सदमे जो कुछ हों दिल पे सहिए
हो तर्क किसी से न मुलाक़ात किसी की
याद है पहले-पहल की वो मुलाक़ात की बात
अब तो नहीं आसरा किसी का
आग़ाज़-ए-मोहब्बत में बरसों यूँ ज़ब्त से हम ने काम लिया