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ज़माने का भरोसा क्या अभी कुछ है अभी कुछ है - हफ़ीज़ जौनपुरी कविता - Darsaal

ज़माने का भरोसा क्या अभी कुछ है अभी कुछ है

ज़माने का भरोसा क्या अभी कुछ है अभी कुछ है

यही है रंग दुनिया का अभी कुछ है अभी कुछ है

जवानी की है आमद हुस्न की हर-दम तरक़्क़ी है

तिरी सूरत तिरा नक़्शा अभी कुछ है अभी कुछ है

न आएगा क़रार उस को न मुमकिन है क़याम उस को

हमारा दिल तिरा वा'दा अभी कुछ है अभी कुछ है

कभी तो जुस्तुजू उस की कभी गुम आप हो जाना

मिरी वहशत मिरा सौदा अभी कुछ है अभी कुछ है

ग़ुरूर-ए-हुस्न है सर में ख़याल-ए-दिलबरी दिल में

दिमाग़ उन का मिज़ाज उन का अभी कुछ है अभी कुछ है

ज़रा मैं मेहरबाँ होना ज़रा मैं जान के दुश्मन

अजब दिल है हसीनों का अभी कुछ है अभी कुछ है

तुम्हें क्यूँ इस क़दर ग़म है 'हफ़ीज़' अपनी तबाही का

यही दुनिया का है नक़्शा अभी कुछ है अभी कुछ है

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