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यूँ तो हसीन अक्सर होते हैं शान वाले - हफ़ीज़ जौनपुरी कविता - Darsaal

यूँ तो हसीन अक्सर होते हैं शान वाले

यूँ तो हसीन अक्सर होते हैं शान वाले

लेकिन कुछ और है तू ओ आन-बान वाले

नाक़ूस-ए-दैर फूँकूँ काबे में या अज़ान दूँ

तुझ को कहाँ पुकारूँ ओ ला-मकान वाले

मिम्बर पे बैठ कर तू इतना बहक न वाइज़

कैसी ये नीची बातें ऊँची दुकान वाले

ये हुस्न ये जवानी मेहमाँ है चंद रोज़ा

इस पर न कर ये ग़र्रा ओ आन-बान वाले

काबे को शैख़ जाए बुत-ख़ाने को बरहमन

यूँही डटे रहेंगे उस आस्तान वाले

अबरू पे डाल कर बल तिरछी नज़र न कर तू

ये तीर कज पड़ेगा बाँकी कमान वाले

ग़ैरों पे तो नज़र है मेरी भी कुछ ख़बर है

मैं भी मिटा हुआ हूँ ओ आन-बान वाले

तलवार खींच कर क्या बाज़ू को देखता है

दो हाथ बस लगा दे अब इम्तिहान वाले

क़ाएल तिरा जहाँ है हाँ फ़र्क़ दरमियाँ है

कुछ हैं यक़ीन वाले कुछ हैं गुमान वाले

फ़रहाद क़ैस दोनों दे बैठे जान आख़िर

मरते हैं बात ही पर जितने हैं आन वाले

वो किस लिए बुलाएँ जाएँ 'हफ़ीज़' हम क्यूँ

वो भी हैं शान वाले हम भी हैं आन वाले

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