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वो हम-कनार है जाम-ए-शराब हाथ में है - हफ़ीज़ जौनपुरी कविता - Darsaal

वो हम-कनार है जाम-ए-शराब हाथ में है

वो हम-कनार है जाम-ए-शराब हाथ में है

बग़ल में चाँद है और आफ़्ताब हाथ में है

पिला के पीर को साग़र जवाँ बनाता है

मज़ा है पीर-ए-मुग़ाँ के शबाब हाथ में है

बर आई आज मिरे दिल की आरज़ू सद शुक्र

कि दामन आप का रोज़-ए-हिसाब हाथ में है

ये आए किस के क़दम दस्त-ए-मौज से दरिया

लिए हुए जो कुलाह हबाब हाथ में है

अरक़ विसाल में पोंछा है गुल से गालों को

यही है वज्ह कि बू-ए-गुलाब हाथ में है

बिन आई है मिरे दस्त-ए-हवस की वस्ल की शब

हिना लगाए जो वो मस्त-ए-ख़्वाब हाथ में है

हवा से तेज़ वो आता है नामा-बर मेरा

नियाज़-नामे का मेरे जवाब हाथ में है

खिले हैं गुल गुल आरिज़ के वस्फ़ में सर-ए-दस्त

क़लम मिरा है कि शाख़-ए-गुलाब हाथ में है

'हफ़ीज़' आप का दीवान ये हुआ मक़्बूल

कि जिस को देखो लिए ये किताब हाथ में है

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