वस्ल में आपस की हुज्जत और है

वस्ल में आपस की हुज्जत और है

इस शकर-रंजी में लज़्ज़त और है

कुछ नहीं वादा-ख़िलाफ़ी का गिला

आप से हम को शिकायत और है

सुब्ह होते ही बदल जाएगी आँख

रात भर उन की इनायत और है

वाज़ कहता है जो मय-ख़ाने के पास

मय-कशो वाइज़ की नीयत और है

साँस उखड़ी है तिरे बीमार की

अब कोई दम की मुसीबत और है

हूरें भी अच्छी हैं ऐ ज़ाहिद मगर

इन परी-ज़ादों की सूरत और है

इल्म जौहर है 'हफ़ीज़' इंसान का

सच है लेकिन आदमियत और है

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