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सुन के मेरे इश्क़ की रूदाद को - हफ़ीज़ जौनपुरी कविता - Darsaal

सुन के मेरे इश्क़ की रूदाद को

सुन के मेरे इश्क़ की रूदाद को

लोग भूले क़ैस को फ़रहाद को

ऐ निगाह-ए-यास हो तेरा बुरा

तू ने तड़पा ही दिया जल्लाद को

बाद मेरे उठ गई क़द्र-ए-सितम

अब तरसते हैं हसीं बेदाद को

इक ज़रा झूटी तसल्ली ही सही

कुछ तो समझा दो दिल-ए-नाशाद को

हाए ये दर्द-ए-जिगर किस से कहूँ

कौन सुनता है मिरी फ़रियाद को

जाएँगे दुनिया से सब कुछ छोड़ कर

हाँ मगर ले कर किसी की याद को

अब मुझे मानें न मानें ऐ 'हफ़ीज़'

मानते हैं सब मिरे उस्ताद को

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