नाज़नीं जिन के कुछ नियाज़ नहीं
नाज़नीं जिन के कुछ नियाज़ नहीं
इन हसीनों से दिल को साज़ नहीं
ग़ैर का भेद क्यूँ न खुल जाए
आप के दिल का तो वो राज़ नहीं
इक तिरी ज़ात के सिवा ज़ाहिद
कोई दुनिया में पाक-बाज़ नहीं
इस में पाता हूँ कुछ तिरी ख़ूबी
मुझ को बे-वज्ह दिल पे नाज़ नहीं
जितने हैं अहल-ए-दर्द हैं हमदर्द
दिल वो पत्थर है जो गुदाज़ नहीं
कह रही है ये सादगी की अदा
नेक-ओ-बद में कुछ इम्तियाज़ नहीं
जुब्बा-साई बुतों के दर की 'हफ़ीज़'
ज़ाहिद-ए-ख़ुश्क की नमाज़ नहीं
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