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किसी को देख कर बे-ख़ुद दिल-ए-काम हो जाना - हफ़ीज़ जौनपुरी कविता - Darsaal

किसी को देख कर बे-ख़ुद दिल-ए-काम हो जाना

किसी को देख कर बे-ख़ुद दिल-ए-काम हो जाना

उसी को लोग कहते हैं ख़याल-ए-ख़ाम हो जाना

मोहब्बत से जो पेश आए कोई हो दोस्त या दुश्मन

हमें तो हर किसी का बंदा-ए-बे-दाम हो जाना

ख़ुदा जाने कि क्या होता मआल अपनी मोहब्बत का

बहुत अच्छा हुआ आग़ाज़ में अंजाम हो जाना

मिटाना हो अगर धब्बा रिया-कारी का ऐ ज़ाहिद

किसी की बज़्म में इक दिन शरीक-ए-जाम हो जाना

जहाँ देखो वहाँ कुछ ज़िक्र है अपनी मोहब्बत का

बुरा है आदमी के वास्ते बदनाम हो जाना

करेगा रख़्ना पैदा कोई दिन दरबाँ का हंगामा

क़यामत है तिरे दर पर हुजूम-ए-आम हो जाना

'हफ़ीज़' ऐसे मुसलमाँ का भी कोई दीन-ओ-मज़हब है

बुतों की दोस्ती में तारिक-ए-इस्लाम हो जाना

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