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कहीं मरने वाले कहा मानते हैं - हफ़ीज़ जौनपुरी कविता - Darsaal

कहीं मरने वाले कहा मानते हैं

कहीं मरने वाले कहा मानते हैं

वही कर गुज़रते हैं जो ठानते हैं

कोई खेल है जान पर खेल जाना

वो ये कह के अक्सर हमें तान्ते हैं

मिला ये जवाब आज रश्क-ए-अदू पर

जो माने हमें उस को हम मानते हैं

तड़प कर इधर हो गया कोई ठंडा

उधर आप दामन ही गर्दानते हैं

कहें क्या शब-ए-हिज्र कटती है क्यूँ-कर

जो दिल पर गुज़रती है हम जानते हैं

मिरे दिल की कुछ क़द्र होगी उन्हीं को

जो खोटा खरा ख़ूब पहचानते हैं

ये फ़िक़रे ये चालें ये घातें ये बातें

तुझे ओ दग़ाबाज़ हम जानते हैं

अदू से भी है सुल्ह मंज़ूर अच्छा

जो अब तक न मानी थी अब मानते हैं

'हफ़ीज़' उस की जिस पर हुई मेहरबानी

उसी को ज़माने में सब मानते हैं

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