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हाए अब कौन लगी दिल की बुझाने आए - हफ़ीज़ जौनपुरी कविता - Darsaal

हाए अब कौन लगी दिल की बुझाने आए

हाए अब कौन लगी दिल की बुझाने आए

जिन से उम्मीद थी और आग लगाने आए

दर्द-मंदों की यूँ ही करते हैं हमदर्दी लोग

ख़ूब हँस हँस के हमें आप रुलाने आए

ख़त में लिखते हैं कि फ़ुर्सत नहीं आने की हमें

इस का मतलब तो ये है कोई मनाने आए

आँख नीची न हुई बज़्म-ए-अदू में जा कर

ये ढिटाई कि नज़र हम से मिलाने आए

ता'ने बे-सब्र यूँ के हाए तशफ़्फ़ी के एवज़

और दिखते हुए दिल को वो दुखाने आए

और तो सब के लिए है तेरी महफ़िल में जगह

हम जो बैठें अभी दरबान उठाने आए

चुटकियाँ लेने को पहलू में रहा एक न एक

तू नहीं तो तेरे अरमान सताने आए

बेकसी का तो जला दिल मिरी तुर्बत पे 'हफ़ीज़'

क्या हुआ वो न अगर शम्अ' जलाने आए

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