दिल में हैं वस्ल के अरमान बहुत

दिल में हैं वस्ल के अरमान बहुत

जम्अ' इस घर में हैं मेहमान बहुत

आए तो दस्त-ए-जुनूँ ज़ोरों पर

चाक करने को गरेबान बहुत

मेरी जानिब से दिल उस का न फिरा

दुश्मनों ने तो भरे कान बहुत

ले के इक दिल ग़म-ए-कौनैन दिया

आप के मुझ पे हैं एहसान बहुत

तर्क-ए-उल्फ़त का हमीं को है ग़म

वो भी हैं दिल में पशेमान बहुत

दिल के वीराने का है आलम कुछ और

हम ने देखे हैं बयाबान बहुत

ख़ाक होने को हज़ारों हसरत

ख़ून होने को हैं अरमान बहुत

सदमा-ए-हिज्र उठाना मुश्किल

जान देना तो है आसान बहुत

रश्क जिन पर है फ़रिश्तों को 'हफ़ीज़'

ऐसे दुनिया में हैं इंसान बहुत

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