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अब तो नहीं आसरा किसी का - हफ़ीज़ जौनपुरी कविता - Darsaal

अब तो नहीं आसरा किसी का

अब तो नहीं आसरा किसी का

अल्लाह है अपनी बेकसी का

ओ आँख बदल के जाने वाले

कुछ ध्यान किसी की आजिज़ी का

बीमार को दीजिए तसल्ली

ये वक़्त नहीं जली-कटी का

आपस में हुई जो बद-गुमानी

मुश्किल है निबाह दोस्ती का

बालीं से कोई उठा ये कह कर

अंजाम ब-ख़ैर हो किसी का

ग़म का भी क़याम कुछ न ठहरा

रोना क्या रोइए ख़ुशी का

पहुँचा ही दिया किसी गली तक

अल्लाह-रे ज़ोर बे-ख़ुदी का

आख़िर को शराब रंग लाई

छुपता नहीं राज़ मय-कशी का

अँधेरा 'हफ़ीज़' हो रहा है

बुझता है चराग़ ज़िंदगी का

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