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सोने वालो जागो - हफ़ीज़ जालंधरी कविता - Darsaal

सोने वालो जागो

सोने वालो जागो

जागो सोने वालो जागो

वक़्त के खोने वालो जागो

बाग़ में चिड़ियाँ बोल रही हैं

कलियाँ आँखें खोल रही हैं

फूल ख़ुशी से झूम रहे हैं

पत्तों का मुँह चूम रहे हैं

जाग उठे दरिया और नहरें

जाग उठीं मौजें और लहरें

नाव चलाने वाले जागे

पार लगाने वाले जागे

सारी दुनिया जाग रही है

काम की जानिब भाग रही है

लिखने पढ़ने वालो जागो

फूलने बढ़ने वालो जागो

मुँह धो-धा कर नाश्ता खाओ

बस्ता ले कर मदरसे जाओ

सुब्ह का सोना ख़ूब नहीं है

अच्छा ये उस्लूब नहीं है

जागो सोने वालो जागो

वक़्त के खोने वालो जागो

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