मोहब्बत करो और निबाहो तो पूछूँ
ये दुश्वारियाँ हैं कि आसानियाँ हैं
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शाएर
बुत कहते हैं मर जा मर जा
है अज़ल की इस ग़लत बख़्शी पे हैरानी मुझे
हयात-ए-जावेदाँ वाले ने मारा
क्यूँ हिज्र के शिकवे करता है क्यूँ दर्द के रोने रोता है
कभी ज़मीं पे कभी आसमाँ पे छाए जा
निगाह-ए-आरज़ू-आमोज़ का चर्चा न हो जाए
हम ही में थी न कोई बात याद न तुम को आ सके
बात भी जिस से अब नहीं मुमकिन
ज़िंदगी फ़िरदौस-ए-गुम-गश्ता को पा सकती नहीं
ये और दौर है अब और कुछ न फ़रमाए