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उस शोख़ ने निगाह न की हम भी चुप रहे - हफ़ीज़ जालंधरी कविता - Darsaal

उस शोख़ ने निगाह न की हम भी चुप रहे

उस शोख़ ने निगाह न की हम भी चुप रहे

हम ने भी आह आह न की हम भी चुप रहे

आया न उन को अहद-मुलाक़ात का लिहाज़

हम ने भी कोई चाह न की हम भी चुप रहे

देखा किए हमारी तरफ़ बज़्म-ए-ग़ैर में

तज्दीद-ए-रस्म-ओ-राह न की हम भी चुप रहे

था ज़िंदगी से बढ़ के हमें वज़्अ का ख़याल

जब उम्र ने निबाह न की हम भी चुप रहे

ख़ामोश हो गईं जो उमंगें शबाब की

फिर जुरअत-ए-गुनाह न की हम भी चुप रहे

मग़रूर था कमाल-ए-सुख़न पर बहुत 'हफ़ीज़'

हम ने भी वाह-वाह न की हम भी चुप रहे

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