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न कर दिल-जूई ऐ सय्याद मेरी - हफ़ीज़ जालंधरी कविता - Darsaal

न कर दिल-जूई ऐ सय्याद मेरी

न कर दिल-जूई ऐ सय्याद मेरी

कि फ़ितरत है बहुत आज़ाद मेरी

असीरी से रिहाई पाने वालो

तुम्हें पहुँचे मुबारकबाद मेरी

सहारा क्यूँ लिया था नाख़ुदा का

ख़ुदा भी क्यूँ करे इमदाद मेरी

भुला दो मुझ को लेकिन याद रखना

सताएगी तुम्हें भी याद मेरी

फ़रिश्ते क्या मुरत्तब कर सकेंगे

बहुत बे-रब्त है रूदाद मेरी

पसंद आने लगी थी सर-बुलंदी

यही थी अव्वलीं उफ़्ताद मेरी

क्या पाबंद-ए-नय नाले को मैं ने

ये तर्ज़-ए-ख़ास है ईजाद मेरी

मिरे अशआर पर चुप रहने वाले

तिरे हिस्से में आई दाद मेरी

क़ज़ा का ज़ुल्म हद से बढ़ गया है

कोई सुनता नहीं फ़रियाद मेरी

ख़ुदावंदा क़ज़ा ने छीन ली है

मिरे आग़ोश से 'इरशाद' मेरी

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