मुद्दतों तक जो पढ़ाया किया उस्ताद मुझे
मुद्दतों तक जो पढ़ाया किया उस्ताद मुझे
इश्क़ में भूल गया कुछ न रहा याद मुझे
क्या मैं दीवाना हूँ या-रब कि सर-ए-राहगुज़र
दूर से घूरने लगते हैं परी-ज़ाद मुझे
अब है आवाज़ की वो शान न बाज़ू की उड़ान
और सय्याद किए देता है आज़ाद मुझे
दाद-ख़्वाही के लिए और तो सामाँ न मिला
नाला-ओ-आह पे रखनी पड़ी बुनियाद मुझे
मेरे शेरों पे वो शरमाए तो अहबाब हँसे
ऐ 'हफ़ीज़' आज ग़ज़ल की ये मिली दाद मुझे
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