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मिटने वाली हसरतें ईजाद कर लेता हूँ मैं - हफ़ीज़ जालंधरी कविता - Darsaal

मिटने वाली हसरतें ईजाद कर लेता हूँ मैं

मिटने वाली हसरतें ईजाद कर लेता हूँ मैं

जब भी चाहूँ इक जहाँ आबाद कर लेता हूँ मैं

मुझ को इन मजबूरियों पर भी है इतना इख़्तियार

आह भर लेता हूँ मैं फ़रियाद कर लेता हूँ मैं

हुस्न बे-चारा तो हो जाता है अक्सर मेहरबाँ

फिर उसे आमादा-ए-बे-दाद कर लेता हूँ मैं

तू नहीं कहता मगर देख ओ वफ़ा-ना-आश्ना

अपनी हस्ती किस क़दर बर्बाद कर लेता हूँ मैं

हाँ ये वीराना ये दिल ये आरज़ूओं का मज़ार

तुम कहो तो फिर इसे आबाद कर लेता हूँ मैं

जब कोई ताज़ा मुसीबत टूटती है ऐ 'हफ़ीज़'

एक आदत है ख़ुदा को याद कर लेता हूँ मैं

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