तिरी तलाश में जब हम कभी निकलते हैं
इक अजनबी की तरह रास्ते बदलते हैं
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हम को मंज़िल ने भी गुमराह किया
तिरी तलाश है या तुझ से इज्तिनाब है ये
कहाँ कहाँ न तसव्वुर ने दाम फैलाए
मोहब्बत करने वाले कम न होंगे
मन-ओ-तू का हिजाब उठने न दे ऐ जान-ए-यकताई
दुनिया में हैं काम बहुत
तमाम उम्र किया हम ने इंतिज़ार-ए-बहार
इक उम्र से हम तुम आश्ना हैं
कुछ इस तरह से नज़र से गुज़र गया कोई
आज उन्हें कुछ इस तरह जी खोल कर देखा किए