तमाम उम्र तिरा इंतिज़ार हम ने किया
इस इंतिज़ार में किस किस से प्यार हम ने किया
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हम को मंज़िल ने भी गुमराह किया
तिरी तलाश है या तुझ से इज्तिनाब है ये
कहाँ कहाँ न तसव्वुर ने दाम फैलाए
नज़र से हद्द-ए-नज़र तक तमाम तारीकी
ये दिलकशी कहाँ मिरी शाम-ओ-सहर में थी
तमाम उम्र किया हम ने इंतिज़ार-ए-बहार
नर्गिस पे तो इल्ज़ाम लगा बे-बसरी का
दिल में इक शोर सा उठा था कभी
दिल से आती है बात लब पे 'हफ़ीज़'
आज उन्हें कुछ इस तरह जी खोल कर देखा किए
मन-ओ-तू का हिजाब उठने न दे ऐ जान-ए-यकताई
ऐसी भी क्या जल्दी प्यारे जाने मिलें फिर या न मिलें हम