आज की रात

चाँदनी रात है जवानी पर

दस्त-ए-गर्दूं में साग़र-ए-महताब

नूर बन बन के छन रही है शराब

साक़ी-ए-आसमाँ पियाला-ब-दस्त

मैं शराब-ए-सुरूर से सरमस्त

फ़िक्र-ए-दोज़ख़ न ज़िक्र-ए-जन्नत है

मैं हूँ और तेरी प्यारी सूरत है

रस-भरे होंट मद-भरी आँखें!

कौन फ़र्दा पे ए'तिबार करे

कौन जन्नत का इंतिज़ार करे

जाने कब मौत का पयाम आए

ये मसर्रत भी हम से छिन जाए

दामन-ए-अक़्ल चाक होने दे

आज ये क़िस्सा पाक होने दे

ग़म को ना-पाएदार कर दें हम

मौत को शर्मसार कर दें हम

लब से लब यूँ मिलें कि खो जाएँ

जज़्ब इक दूसरे में हो जाएँ

मैं रहूँ और न तू रहे बाक़ी!

किस क़दर दिल-नशीं हैं लब तेरे

बादा-ए-अहमरीं हैं लब तेरे

तेरे होंटों का रस नहीं है ये

आब-ए-कौसर है अंग्बीं है ये

शहद के घूँट पी रहा हूँ मैं

आज की रात जी रहा हूँ मैं

आज की रात फिर न आएगी!

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