मन-ओ-तू का हिजाब उठने न दे ऐ जान-ए-यकताई
मन-ओ-तू का हिजाब उठने न दे ऐ जान-ए-यकताई
कहीं ऐसा न हो बन जाऊँ ख़ुद अपना तमन्नाई
वही मैं हूँ वही है तेरे ग़म की कार-फ़रमाई
कभी तन्हाई में महफ़िल कभी महफ़िल में तन्हाई
खलिश-अंगेज़ है वो आलम-ए-जज़्ब-ओ-ए-गुरेज़ अब तक
तिरी अच्छी बुरी हर बात यूँ तो मुझ को याद आई
क़ुसूर-ए-ज़र्फ़ समझूँ या शोऊर-ए-लज़्ज़त-अंदोज़ी
तिरे लुत्फ़-ओ-करम में तिश्नगी ही तिश्नगी पाई
न छोड़ा दामन-ए-होश-ओ-ख़िरद दिल ने मोहब्बत में
सज़ा-ए-दिल हिसार-ए-आगही की क़ैद-ए-तन्हाई
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