कुछ इस तरह से नज़र से गुज़र गया कोई

कुछ इस तरह से नज़र से गुज़र गया कोई

कि दिल को ग़म का सज़ा-वार कर गया कोई

दिल-ए-सितम-ज़दा को जैसे कुछ हुआ ही नहीं

ख़ुद अपने हुस्न से यूँ बे-ख़बर गया कोई

निगाह-ए-शौक़ की महरूमियों से ना-वाक़िफ़

निगाह-ए-शौक़ पे इल्ज़ाम धर गया कोई

अब उन के हुस्न में हुस्न-ए-नज़र भी शामिल है

कुछ और मेरी नज़र से सँवर गया कोई

किसी के पाँव की आहट कि दिल की धड़कन थी

हज़ार बार उठा सू-ए-दर गया कोई

नसीब-ए-अहल-ए-वफ़ा ये सुकून-ए-दिल तो न था

ज़रूर नाला-ए-दिल बे-असर गया कोई

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