सभी के दीप सुंदर हैं हमारे क्या तुम्हारे क्या
उजाला हर तरफ़ है इस किनारे उस किनारे क्या
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मिले फ़ुर्सत तो सुन लेना किसी दिन
जो पर्दों में ख़ुद को छुपाए हुए हैं
क़दम शबाब में अक्सर बहकने लगता है
कोई बतलाए कि ये तुर्फ़ा तमाशा क्यूँ है
क्या जुर्म हमारा है बता क्यूँ नहीं देते
कुछ सोच के परवाना महफ़िल में जला होगा
ये हादसा भी शहर-ए-निगाराँ में हो गया
जो ख़त है शिकस्ता है जो अक्स है टूटा है
तेज़ जब ख़ंजर-ए-बेदाद किया जाएगा
दिल की आवाज़ में आवाज़ मिलाते रहिए
जब भी तिरी यादों की चलने लगी पुर्वाई