फूल अफ़्सुर्दा बुलबुलें ख़ामोश
फ़स्ल गुल आई है ख़िज़ाँ-बर-दोश
Habib Jalib
Wasi Shah
Parveen Shakir
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Allama Iqbal
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
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ये किस मक़ाम पे लाई है ज़िंदगी हम को
उस से बढ़ कर किया मिलेगा और इनआम-ए-जुनूँ
इक शगुफ़्ता गुलाब जैसा था
मुद्दत की तिश्नगी का इनआ'म चाहता हूँ
दिल की आवाज़ में आवाज़ मिलाते रहिए
समझ के आग लगाना हमारे घर में तुम
क़दम शबाब में अक्सर बहकने लगता है
इक हुस्न-ए-तसव्वुर है जो ज़ीस्त का साथी है
जो पर्दों में ख़ुद को छुपाए हुए हैं
जो नज़र से बयान होती है
आ जाओ कि मिल कर हम जीने की बिना डालें
वो तो बैठे रहे सर झुकाए हुए