कभी ख़िरद कभी दीवानगी ने लूट लिया
तरह तरह से हमें ज़िंदगी ने लूट लिया
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मिले फ़ुर्सत तो सुन लेना किसी दिन
मैं ने आबाद किए कितने ही वीराने 'हफ़ीज़'
दिल की आवाज़ में आवाज़ मिलाते रहिए
पैग़ाम ईद
जब तसव्वुर में कोई माह-जबीं होता है
हदीस-ए-तल्ख़ी-ए-अय्याम से तकलीफ़ होती है
वो बात 'हफ़ीज़' अब नहीं मिलती किसी शय में
समझ के आग लगाना हमारे घर में तुम
मुद्दत की तिश्नगी का इनआ'म चाहता हूँ
तेज़ जब ख़ंजर-ए-बेदाद किया जाएगा
हिसार-ए-ज़ात के दीवार-ओ-दर में क़ैद रहे
जो पर्दों में ख़ुद को छुपाए हुए हैं