जो पर्दों में ख़ुद को छुपाए हुए हैं
क़यामत वही तो उठाए हुए हैं
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हर हक़ीक़त है एक हुस्न 'हफ़ीज़'
कुछ सोच के परवाना महफ़िल में जला होगा
दिल की आवाज़ में आवाज़ मिलाते रहिए
आसान नहीं मरहला-ए-तर्क-ए-वफ़ा भी
समझ के आग लगाना हमारे घर में तुम
इश्क़ में हर नफ़स इबादत है
मैं ने आबाद किए कितने ही वीराने 'हफ़ीज़'
कभी ख़िरद कभी दीवानगी ने लूट लिया
फूल अफ़्सुर्दा बुलबुलें ख़ामोश
ये किस मक़ाम पे लाई है ज़िंदगी हम को
इक शगुफ़्ता गुलाब जैसा था
पैग़ाम ईद