दुश्मनों की जफ़ा का ख़ौफ़ नहीं
दोस्तों की वफ़ा से डरते हैं
Anwar Masood
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
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Gulzar
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Jaun Eliya
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ये किस मक़ाम पे लाई है ज़िंदगी हम को
दिल की आवाज़ में आवाज़ मिलाते रहिए
ये हादसा भी शहर-ए-निगाराँ में हो गया
जो नज़र से बयान होती है
ख़फ़ा है गर ये ख़ुदाई तो फ़िक्र ही क्या है
जब भी तिरी यादों की चलने लगी पुर्वाई
उस से बढ़ कर किया मिलेगा और इनआम-ए-जुनूँ
सभी के दीप सुंदर हैं हमारे क्या तुम्हारे क्या
ये कैसी हवा-ए-ग़म-ओ-आज़ार चली है
आसान नहीं मरहला-ए-तर्क-ए-वफ़ा भी
एक सीता की रिफ़ाक़त है तो सब कुछ पास है