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रात का नाम सवेरा ही सही - हफ़ीज़ बनारसी कविता - Darsaal

रात का नाम सवेरा ही सही

रात का नाम सवेरा ही सही

आप कहते हैं तो ऐसा ही सही

क्या बुराई है अगर देख लें हम

ज़िंदगी एक तमाशा ही सही

कुछ तो काँधों पे लिए हैं हम लोग

अपने अरमानों का लाशा ही सही

पीछे हटना हमें मंज़ूर नहीं

सामने आग का दरिया ही सही

क्या ज़रूरी है कि मैं नाम भी लूँ

मेरा दुश्मन कोई अपना ही सही

आइना देख के डर जाता हूँ

आइना मेरा शनासा ही सही

मेरा क़द आप से ऊँचा है बहुत

मैं 'हफ़ीज़' आप का साया ही सही

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