कुछ सोच के परवाना महफ़िल में जला होगा
कुछ सोच के परवाना महफ़िल में जला होगा
शायद इसी मरने में जीने का मज़ा होगा
हर सई-ए-तबस्सुम पर आँसू निकल आए हैं
अंजाम-ए-तरब-कोशी क्या जानिए क्या होगा
गुमराह-ए-मोहब्बत हूँ पूछो न मिरी मंज़िल
हर नक़्श-ए-क़दम मेरा मंज़िल का पता होगा
क्या तेरा मुदावा हो दर्द-ए-शब-ए-तन्हाई
चुप रहिए तो बर्बादी कहिए तो गिला होगा
कतरा के तो जाते हो दीवाने के रस्ते से
दीवाना लिपट जाए क़दमों से तो क्या होगा
मयख़ाने से मस्जिद तक मिलते हैं नुक़ूश-ए-पा
या शैख़ गए होंगे या रिंद गया होगा
फ़र्ज़ानों का क्या कहना हर बात पे लड़ते हैं
दीवाने से दीवाना शायद ही लड़ा होगा
रिंदों को 'हफ़ीज़' इतना समझा दे कोई जा कर
आपस में लड़ोगे तुम वाइ'ज़ का भला होगा
(4869) Peoples Rate This