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इश्क़ में हर नफ़स इबादत है - हफ़ीज़ बनारसी कविता - Darsaal

इश्क़ में हर नफ़स इबादत है

इश्क़ में हर नफ़स इबादत है

मज़हब-ए-इश्क़ आदमियत है

इक ज़माना रक़ीब है मेरा

जब से हासिल तिरी रिफ़ाक़त है

ज़िंदगी नाम रंज-ओ-ग़म ही सही

फिर भी किस दर्जा ख़ूबसूरत है

इक मोहब्बत भरी नज़र के सिवा

और क्या अहल-ए-दिल की क़ीमत है

चंद मुख़्लिस जहाँ इकट्ठा हूँ

वो जगह अहल-ए-दिल की जन्नत है

कौन सुलझाए गेसु-ए-दौरान

अपनी उलझन से किस को फ़ुर्सत है

एक दुनिया तबाह कर डाले

एक ज़र्रा में ऐसी ताक़त है

सितम-दोस्त हो कि लुत्फ़ दोस्त

जो भी मिल जाए वो ग़नीमत है

उन को देखेंगे बे-हिजाब 'हफ़ीज़'

शौक़-ए-दीदार अगर सलामत है

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