इक शगुफ़्ता गुलाब जैसा था

इक शगुफ़्ता गुलाब जैसा था

वो बहारों के ख़्वाब जैसा था

पढ़ लिया हम ने हर्फ़ हर्फ़ उसे

उस का चेहरा किताब कैसा था

दूर से कुछ था और क़रीब से कुछ

हर सहारा सराब जैसा था

हम ग़रीबों के वास्ते हर रोज़

एक रोज़-ए-हिसाब जैसा था

किस क़दर जल्द उड़ गया यारो

वक़्त रंग-ए-शबाब जैसा था

कैसे गुज़री है उम्र क्या कहिए

लम्हा लम्हा अज़ाब जैसा था

ज़हर था ज़िंदगी के साग़र में

रंग रंग-ए-शराब जैसा था

क्या ज़माना था वो ज़माना भी

हर गुनह जब सवाब जैसा था

कौन गर्दानता उसे क़ातिल

वो तो इज़्ज़त-मआब जैसा था

बे-हिजाबी के बावजूद भी कुछ

इस के रुख़ पर हिजाब जैसा था

जब भी छेड़ा तो इक फ़ुग़ाँ निकली

दिल शिकस्ता रबाब जैसा था

इस के रुख़ पर नज़र ठहर न सकी

वो 'हफ़ीज़' आफ़्ताब जैसा था

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