वो पूछते हैं दिल-ए-मुब्तला का हाल और हम
जवाब में फ़क़त आँसू बहाए जाते हैं
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Gulzar
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(939) Peoples Rate This
निज़ाम-ए-तबीअत से घबरा गया दिल
उठने को तो उट्ठा हूँ महफ़िल से तिरी लेकिन
उस बेवफ़ा की बज़्म से चश्म-ए-ख़याल में
अश्क-ए-ग़म उक़्दा-कुशा-ए-ख़लिश-ए-जाँ निकला
लुत्फ़-ए-जफ़ा इसी में है याद-ए-जफ़ा न आए फिर
उस ने इस अंदाज़ से देखा मुझे
अब क्यूँ गिला रहेगा मुझे हिज्र-ए-यार का
देख कर शम्अ के आग़ोश में परवाने को
दिल-ए-सरशार मिरा चश्म-ए-सियह-मस्त तिरी
तू है बहार तो दामन मिरा हो क्यूँ ख़ाली
दर्द सा उठ के न रह जाए कहीं दिल के क़रीब
मैं क्या हूँ कौन हूँ ये भी ख़बर नहीं मुझ को