तुम अज़ीज़ और तुम्हारा ग़म भी अज़ीज़
किस से किस का गिला करे कोई
Jaun Eliya
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Habib Jalib
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1312) Peoples Rate This
ग़म-ए-दिल अब किसी के बस का नहीं
खोया हुआ सा रहता हूँ अक्सर मैं इश्क़ में
दिल-ए-सरशार मिरा चश्म-ए-सियह-मस्त तिरी
ज़बाँ पे हर्फ़-ए-शिकायत अरे मआज़-अल्लाह
वो निगाहें जो दिल-ए-महज़ूँ में पिन्हाँ हो गईं
अब वो पीरी में कहाँ अहद-ए-जवानी की उमंग
लुत्फ़-ए-जफ़ा इसी में है याद-ए-जफ़ा न आए फिर
उठने को तो उट्ठा हूँ महफ़िल से तिरी लेकिन
वो पूछते हैं दिल-ए-मुब्तला का हाल और हम
बेदर्द मुझ से शरह-ए-ग़म-ए-ज़िंदगी न पूछ
हर मुसीबत थी मुझे ताज़ा पयाम-ए-आफ़ियत
मिरा वजूद हक़ीक़त मिरा अदम धोका