मिरा वजूद हक़ीक़त मिरा अदम धोका
फ़ना की शक्ल में सर-चश्मा-ए-बक़ा हूँ मैं
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बेदर्द मुझ से शरह-ए-ग़म-ए-ज़िंदगी न पूछ
तुम अज़ीज़ और तुम्हारा ग़म भी अज़ीज़
लुत्फ़-ए-जफ़ा इसी में है याद-ए-जफ़ा न आए फिर
दिल-ए-सरशार मिरा चश्म-ए-सियह-मस्त तिरी
तू है बहार तो दामन मिरा हो क्यूँ ख़ाली
हर मुसीबत थी मुझे ताज़ा पयाम-ए-आफ़ियत
वो निगाहें जो दिल-ए-महज़ूँ में पिन्हाँ हो गईं
अब क्यूँ गिला रहेगा मुझे हिज्र-ए-यार का
तू न हो हम-नफ़स अगर जीने का लुत्फ़ ही नहीं
अब वो पीरी में कहाँ अहद-ए-जवानी की उमंग
हज़ार ख़ाक के ज़र्रों में मिल गया हूँ मैं