ज़बाँ पे हर्फ़-ए-शिकायत अरे मआज़-अल्लाह

ज़बाँ पे हर्फ़-ए-शिकायत अरे मआज़-अल्लाह

मुझे तिरे सितम-ए-सब्र-आज़मा की क़सम

बस इक निगाह-ए-करम का उमीद-वार हूँ मैं

जफ़ा-शिआर तुझे मेरी इल्तिजा की क़सम

तू है बहार तो दामन मिरा हो क्यूँ ख़ाली

इसे भी भर दे गुलों से तुझे ख़ुदा की क़सम

ग़ज़ब की छेड़ है 'हादी' ये और क्या कहिए

वो खा रहे हैं मिरे तर्क-ए-मुद्दआ की क़सम

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Zaban Pe Harf-e-shikayat Are Maaz-allah In Hindi By Famous Poet Hadi Machlishahri. Zaban Pe Harf-e-shikayat Are Maaz-allah is written by Hadi Machlishahri. Complete Poem Zaban Pe Harf-e-shikayat Are Maaz-allah in Hindi by Hadi Machlishahri. Download free Zaban Pe Harf-e-shikayat Are Maaz-allah Poem for Youth in PDF. Zaban Pe Harf-e-shikayat Are Maaz-allah is a Poem on Inspiration for young students. Share Zaban Pe Harf-e-shikayat Are Maaz-allah with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.