दर्द सा उठ के न रह जाए कहीं दिल के क़रीब

दर्द सा उठ के न रह जाए कहीं दिल के क़रीब

मेरी कश्ती न कहीं ग़र्क़ हो साहिल के क़रीब

वज्द में रूह है और रक़्स में है पा-ए-तलब

देखिए हाल मिरे शौक़ का मंज़िल के क़रीब

रह गया था जो कभी पा-ए-तलब में चुभ कर

अब वही ख़ार-ए-तमन्ना है रग-ए-दिल के क़रीब

अब वो पीरी में कहाँ अहद-ए-जवानी की उमंग

रंग मौजों का बदल जाता है साहिल के क़रीब

जज़्बा-ए-शौक़ भी कुछ काम न आया 'हादी'

ना-तवानी ने बिठाया मुझे मंज़िल के क़रीब

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Dard Sa UTh Ke Na Rah Jae Kahin Dil Ke Qarib In Hindi By Famous Poet Hadi Machlishahri. Dard Sa UTh Ke Na Rah Jae Kahin Dil Ke Qarib is written by Hadi Machlishahri. Complete Poem Dard Sa UTh Ke Na Rah Jae Kahin Dil Ke Qarib in Hindi by Hadi Machlishahri. Download free Dard Sa UTh Ke Na Rah Jae Kahin Dil Ke Qarib Poem for Youth in PDF. Dard Sa UTh Ke Na Rah Jae Kahin Dil Ke Qarib is a Poem on Inspiration for young students. Share Dard Sa UTh Ke Na Rah Jae Kahin Dil Ke Qarib with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.