ख़ार को तो ज़बान-ए-गुल बख़्शी
गुल को लेकिन ज़बान-ए-ख़ार ही दी
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तुम्हारे गाँव से जो रास्ता निकलता है
बे-महल है गुफ़्तुगू हैं बे-असर अशआर अभी
मैं नहीं जा पाऊँगा यारो सू-ए-गुलज़ार अभी
वापसी
ख़लिश-ओ-सोज़ दिल-फ़िगार ही दी
नीला आसमान