ख़लिश-ओ-सोज़ दिल-फ़िगार ही दी

ख़लिश-ओ-सोज़ दिल-फ़िगार ही दी

दिल में शमशीर आब-दार ही दी

बेवफ़ा से मुआमले के लिए

इक तबीअत वफ़ा-शिआर ही दी

कैफ़ियत दिल की ब्यान करने को

एक आवाज़ दिल-फ़िगार ही दी

ख़ार को तो ज़बान-ए-गुल बख़्शी

गुल को लेकिन ज़बान-ए-ख़ार ही दी

दिल शब-ए-ज़िंदा-दार हम को दिया

हुस्न को चश्म-ए-पुर-ख़ुमार ही दी

ख़ुद रक़ीबों के वास्ते मैं ने

ज़ुल्फ़ माशूक़ की सँवार ही दी

क्या नशेब-ओ-फ़राज़ थी 'तनवीर'

ज़िंदगी आप ने गुज़ार ही दी

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