तेरी बस्ती में जिधर से गुज़रे
हाए क्या लोग नज़र से गुज़रे
कितनी यादों ने हमें थाम लिया
हम जो इस राहगुज़र से गुज़रे
Parveen Shakir
Gulzar
Mir Taqi Mir
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Wasi Shah
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उट्ठो मरने का हक़ इस्तिमाल करो
मल्का-ए-तरन्नुम नूर-ए-जहाँ की नज़्र
सो गए अंजुम-ए-शब याद न आ
मुम्ताज़
ये और बात तेरी गली में न आएँ हम
तेरे होने से
लायल-पूर
दियार-ए-सब्ज़ा ओ गुल से निकल कर
शहर वीराँ उदास हैं गलियाँ
यौम-ए-मई
नज़र नज़र में लिए तेरा प्यार फिरते हैं