सो गए अंजुम-ए-शब याद न आ
ऐ मिरी जान-ए-तरब याद न आ
मिरी पथराई हुई आँखों में
कोई आँसू नहीं अब याद न आ
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नीलो
अहद-ए-सज़ा
हर-गाम पर थे शम्स-ओ-क़मर उस दयार में
दिल पर जो ज़ख़्म हैं वो दिखाएँ किसी को क्या
एक हमें आवारा कहना कोई बड़ा इल्ज़ाम नहीं
सच ही लिखते जाना
और सब भूल गए हर्फ़-ए-सदाक़त लिखना
एक याद
जवाँ आग
कितना सुकूत है रसन-ओ-दार की तरफ़
इस शहर-ए-ख़राबी में ग़म-ए-इश्क़ के मारे
दिल-ए-पुर-शौक़ को पहलू में दबाए रक्खा