रंग ओ बू-ए-गुलाब कह लूँगा
मौज-ए-जाम-ए-शराब कह लूँगा
लोग कहते हैं तेरा नाम न लूँ
मैं तुझे माहताब कह लूँगा
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मीरा-जी
उस रऊनत से वो जीते हैं कि मरना ही नहीं
न तेरी याद न दुनिया का ग़म न अपना ख़याल
भुला भी दे उसे जो बात हो गई प्यारे
'नूर-जहाँ'
वही हालात हैं फ़क़ीरों के
हम ने सुना था सहन-ए-चमन में कैफ़ के बादल छाए हैं
इक तिरी याद से इक तेरे तसव्वुर से हमें
जहाँ आसाँ था दिन को रात करना
उट्ठो मरने का हक़ इस्तिमाल करो
कम पुराना बहुत नया था फ़िराक़
कॉफ़ी-हाउस