मुद्दतें हो गईं ख़ता करते
शर्म आती है अब दुआ करते
चाँद तारे भी उन का ऐ 'जालिब'
थरथराते हैं सामना करते
Gulzar
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Anwar Masood
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
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'ग़ालिब'-ओ-'यगाना' से लोग भी थे जब तन्हा
'मीर'-ओ-'ग़ालिब' बने 'यगाना' बने
अपनों ने वो रंज दिए हैं बेगाने याद आते हैं
शहर-ए-ज़ुल्मात को सबात नहीं
दस्तूर
नन्ही जा सो जा
कराहते हुए इंसान की सदा हम हैं
तेज़ चलो
रंग ओ बू-ए-गुलाब कह लूँगा
हुजूम देख के रस्ता नहीं बदलते हम
अफ़्सोस तुम्हें कार के शीशे का हुआ है
जम्हूरियत